Agaricus bisporus – सफेद मशरूम की खेती, मशरूम का बीज, फायदे 

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सफेद मशरूम | सफेद मशरूम की खेती | मशरूम का बीज कहा से मिलता है | सफेद मशरूम खाने के फायदे


Agaricus bisporus – सफेद मशरूम की खेती, मशरूम का बीज, फायदे : ऐसा फल जो आपको लाखो कमा कर देगा। इस फल का नाम सफेद व्हाइट मशरूम है ।पिछले कुछ वर्षों में किसानों का रुझान मशरूम की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है, मशरूम की खेती बेहतर आमदनी का जरिया बन सकती है। इसे हिंदी मैं खुंबी कहते है। इस फल को खुंबी क्यू कहते हैं – आपको गाय का दूध मालूम ही हो  गा उस दूध का जो रंग होता है वही रंग इस फल को होता है , और यह फल धूप में सुखाने पर उसका जो सफेद रंग होता है उसमे ज्यादा बदलाव हमे नजर नहीं आता। यह गर्मी के मौसम आने वाला फल है । इस फल सबसे पहले हमारे भारत के जगलोमे पाए गए थे।विश्व में मशरूम की खेती हजारों वर्षों से की जा रही है, जबकि भारत में मशरूम के उत्पादन का इतिहास लगभग तीन दशक पुराना है। भारत में 10-12 वर्षों से मशरूम के उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। इस समय हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना व्यापारिक स्तर पर मशरूम की खेती करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य है। इस फल को अप्रैल और सितम्बर माह तक गिर्द क्षेत्रों खेती कर सकते है। यह उपज लेने केलिए तापमान को संतुलित रखना पड़ता है । जैसे तीस डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान पर अन्य खुंबी का नही की जा सकता है। पर हम आपको जो सफेद मशरूम के बारे बता रहे हैं इसको किसी भी तापमान में उगाया जा सकता है।इस कारण सफेद मशरूम की खेती मैं साल भर उत्पादन चक्र में हमे कोई भी परेशानी नही है।इसकी उपजा क्षमता 60-70 प्रतिशत तक होती है । दूध छत्ता आकार में काफी बडा होता है एवं अधिक समय तक खराब नहीं होती है । अलग-अलग राज्यों में किसान मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, कम जगह और कम समय के साथ ही इसकी खेती में लागत भी बहुत कम लगती है, जबकि मुनाफा लागत से कई गुना ज्यादा मिल जाता है। मशरूम की खेती के लिए किसान किसी भी कृषि विज्ञान केंद्र या फिर कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण ले सकते हैं।

 

  • सफेद मशरूम की खेती

सफेद मशरूम की खेती के लिए सबसे ज़रूरी काम गेहूं या धान का भूसा को रोग मुक्त करने 80°तापमान पर पानी में उबालना है। फिर ट्र में भरकर बीज को डाल देना है। तीन सप्ताह के बाद केसिंग करने की जरूरत होती है। इसके बाद मशरूम की पैदावार होती है।इस भूसे को सर्वप्रथम उपचारित कर तैयार करना पड़ता है। जिससे उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवों को नष्ट किया जा सके । इन सूक्ष्म जीवों की वजह से खुंभी कवकजाल फैलता नहीं हैं तथा अच्छी पैदावार नहीं मिलती । भूसे की उपचार की मुख्यतः तीन विधियों हैं । गर्म पानी द्वारा, भाप द्वारा एवं रसायन द्वारा । सफेद बटन मशरूम उत्पादन की प्रौद्योगिकी उत्तरी भारत में सफेद बटन मशरुम की मौसमी खेती करने के लिए अक्तूबर से मार्च तक का समय उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान मशरूम की दो फसलें ली जा सकती हैं। बटन मशरूम की खेती के लिए अनुकूल तापमान 15-22 डिग्री सेंटीग्रेट एवं सापेक्षित आद्रता 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए।

 विश्व में खाने योग्य मशरुम की लगभग 10000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां हीं खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।

  • भारतीय वातावरण में मुख्य रुप से पांच प्रकार के खाद्य मशरुमों की व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है।
  • 1 } सफेद बटन मशरुम 2 } ढींगरी (ऑयस्टर) मशरुम 3 }  दूधिया मशरुम 4 }  पैडीस्ट्रा मशरुम 5 } शिटाके मशरुम

भारत में सफेद मशरुम की खेती पहले निम्न तापमान वाले स्थानों पर की जाती थी, लेकिन आजकल नई तकनीकियों को अपनाकर इसकी खेती अन्य जगह पर भी की जा रही है। सरकार द्वारा सफेद बटन मशरूम की खेती के प्रचार-प्रसार को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। भारत में अधिकतर सफेद बटन मशरुम की एस-11, टीएम-79 और होर्स्ट यू-3 उपभेदों की खेती की जाती है। बटन मशरूम के कवक जाल के फैलाव के लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इस तापमान पर कवक जाल बहुत तेजी से फैलता है। बाद में इसके लिए 14-18 डिग्री सेल्सियस तापमान ही उपयुक्त रहता है। इसको हवादार कमरे, सेड, हट या झोपड़ी में आसानी से उगाया जा सकता है।

Agaricus bisporus - सफेद मशरूम की खेती, मशरूम का बीज, फायदे 

  • मशरूम का बीज कहा से मिलता है –

मशरुम की खेती में प्रयोग होने वाले बीज को स्पॉन कहते हैं। मशरुम की अधिक पैदावार लेने के लिए बीज शुद्ध व अच्छी किस्म का होना चाहिए। मशरुम की चयनित प्रभेदों के फलने वाले सम्वर्धन (कल्चर) से उत्पन्न स्पॉन का उत्पादन जीवाणु रहित वातावरण में किया जाता है। उच्चतम उत्पादन देने वाले संवर्धन को अन्य स्थानों से मंगवाकर अपने यहां प्रयोगशाला में स्पॉन तैयार कर सकते हैं। स्पॉन की अधिकतम मात्रा कम्पोस्ट के ताजे भार के 0.5-0.75 प्रतिशत पर्याप्त होती है। निम्न स्तर की कम्पोस्ट में माइसीलियम का फैलाव कम होता है। अच्छी किस्म का बीज प्राप्त करने के लिए कम से कम एक माह पहले विश्वविद्यालय के पादप रोग विज्ञान विभाग में बुकिंग करा देनी चाहिए, जिससे समय पर बीज तैयार करके आपको दिया जा सके। उन्नति किस्म के स्पॉन को सुविधा अनुसार निम्नलिखित प्रयोगशालाओं से प्राप्त किया जा सकता है। खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश, डॉ यशवंत सिंह परमार बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन (हिमाचल प्रदेश), पादप रोग विज्ञान विभाग, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा), बागवानी निदेशालय, मशरूम स्पॉन प्रयोगशाला, कोहिमा, कृषि विभाग, मणिपुर, इम्फाल, सरकारी स्पॉन उत्पादन प्रयोगशाला, बागवानी परिसर, चाउनी कलां, होशियारपुर (पंजाब), विज्ञान समिति, उदयपुर (राजस्थान), क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला, सीएसआईआर, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर), कृषि विभाग, लालमंडी, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर), पादप रोग विज्ञान विभाग, जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (मध्य प्रदेश), पादप रोग विज्ञान विभाग, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट (असम), क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केन्द्र, धौलाकुआं (हिमाचल प्रदेश), हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय स्पॉन प्रयोगशाला, पालमपुर (हिमाचल प्रदेश), इन सरकारी स्पॉन उत्पादन केन्द्रों के अलावा बहुत से निजी व्यक्ति भी मशरूम बीज उत्पादन से जुड़े हैं जो सोलन, हिसार, सोनीपत, कुरूक्षेत्र (हरियाणा), दिल्ली, पटना (बिहार), मुम्बई (महाराष्ट्र) इत्यादि जगहों पर स्थित हैं।

  • मशरूम की बीजाई (स्पॉनिंग)

मशरुम उत्पादन के लिए तैयार की गई सेड/झोपड़ी में बनी स्लेबों या बेडों पर पॉलिथीन सीट रखने के बाद 6-8 इंच मोटी कम्पोस्ट खाद की परत बिछा देते हैं, इसके बाद कम्पोस्ट खाद के ऊपर मशरुम के बीज/स्पॉन को मिला देते हैं। सौ किलोग्राम कम्पोस्ट खाद की बीजाई के लिए 500-750 ग्राम बीज पर्याप्त रहता है। स्पॉन की बीजाई करने के बाद पॉलिथीन सीट से ढक देना चाहिए।

  • बीज रखने में सावधानियां

मशरुम का बीज 40 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक तापमान पर 48 घंटे में मर जाता है, तथा बीज में सड़ने की बदबू भी आने लगती है। गर्मियों के समय में बीज को रात्रि में लेकर आना चाहिए। यदि सम्भव हो सके तो थर्मोकोल के बने डिब्बे में बीज की बोतलों या लिफाफों के साथ बर्फ के टुकड़ों को रखकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर आएं। बीज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए वातानुकूल वाहन को इस्तेमाल में लाया जाए तो अधिक तापमान से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।

सफेद मशरूम खाने के फायदे 

सफेद रंग का मशरूम फूड आइटम्‍स बहुत मशहूर है और इसमें पोषक तत्‍व प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं।

  • सफेद मशरूम खाद्य कवक हैं जो कि स्पंजी होता है और ये फूड दिखने में मांस जैसा होता है। सफेद मशरूम आपको बड़ी आसानी से मिल जाएगा और आमतौर पर इसका प्रयोग सूप, सलाद और स्टिर फ्राइज़ में किया जाता है। मशरूम के कई प्रकार हैं जैसे ऑएस्टकर मशरूम, बटन मशरूम और शिटाके मशरूम। मशरूम में कैलोरी की मात्रा कम होती है और ये विटामिन बी का बेहतर स्रोत माना जाता है। मशरूम में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं जिस वजह से ये सेहत के लिए फायदेमंद रहता है। मशरूम में जिंक और पोटाशियम प्रचुर मात्रा में होता है जोकि शारीरिक क्रियाओं को बेहतर तरीके से काम करने में मदद करते हैं। सफेद मशरूम के इन फायदों के बारे में जानने के बाद आप भी इसे अपने खाने में जरूर शामिल करेंगें। तो चलिए जानते हैं इस सुपरफूड के फायदों के बारे में –

 

  • कोलेस्ट्रॉल –

सफेद मशरूम में प्रोटीन अत्यमधिक मात्रा में होता है और ये कोलस्ट्रॉल को बढ़ने से रोकता है। इसके अलावा मशरूम में फाइबर और कुछ एंजाइम्सा होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल को बढ़ने से रोकते हैं। इसमें मौजूद प्रोटीन शरीर पर जमे अतिरिक्त वसा और कोलेस्ट्रॉल को घटाने में मदद करता है।

  • वजन कम 

सफेद मशरूम में प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है जोकि पाचन तंत्र को दुरुस्ति करता है और मेटाबॉलिज्मम को ठीक रखता है। मशरूम में वसा और कार्बोहाइड्रेट कम होता है इसलिए ये मांसपेशियों पर जमी अतिरिक्तक चर्बी को कम करता है। वजन कम करने में सफेद मशरूम फायदेमंद होता है।

  • हड्डियां मजबूत करता है

सफेद मशरूम में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम होता है जोकि हड्डियों को मजबूत बनाता है। नियमित रूप से मशरूम का सेवन करने से ऑस्टियोपोरोसिस, जोड़ों का दर्द और हड्डियों से संबंधित अन्ये कई तरह के विकार होने का खतरा कम हो जाता है।

  • इम्यून सिस्टम

मशरूम में एरगोथिओनेईन नामक एक शक्तिा‍शाली एंटीऑक्सीडेंट होता है जोकि इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद करता है। इसमें नेचुरल एंटीबायोटिक और एंटी फंगल यौगिक भी मौजूद होते हैं जोकि कई तरह के संक्रमणों से शरीर की रक्षा करते हैं।

  • आयरन

सफेद मशरूम में कॉपर होता है जोकि खाने से आयरन को अवशोषित करने की क्रिया को उत्तेजित करता है। इसके साथ ही मशरूम में आयरन भी होता है इसलिए मिनरल्सय और आयरन मिलकर हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और अनीमिया से रक्षा करते हैं।

  • मधुमेह से बचाव

सफेद मशरूम में प्राकृतिक इंसुलिन और एंजाइम्सम होते हैं जोकि खाने में मौजूद शर्करा और स्टा र्च को तोड़ने में मदद करते हैं। इसके अलावा ये क्रोमियम का भी उत्तम स्रोत है। इससे रक्त शर्करा का स्तर संतुलित रहता है। मधुमेह रो‍गियों के लिए ये सुपरफूड से कम नहीं है।

  • सेलेनियम

सेलेनियम की अधिकता शाकाहारियों के लिए प्रचुर मात्रा में सेलेनियम का सेवन करने के लिए सफेद मशरूम बेहतर स्रोत है। इसमें सेलेनियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। सेलेनियम से हड्डियों की सेहत में सुधार आता है और दांत, बाल और नाखून मज़बूत बनते हैं। अगर आपको ये लेख पसंद आया तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।

  • विटामिन बी 2 और बी 5

विटामिन बी 2 और बी 5 की प्रचुरता आहार में सफेद मशरूम को शामिल करने से आपको विटामिन बी कॉम्लेक्स और बी 5 और बी 2 भी मिलेगा। ये दो पोषक तत्वम कोशिकाओं से एनर्जी बनाने वाले एंजाइम्स को क्रियाशील बनाते हैं। विटामिन बी 2 लिवर के काम करने में मदद करता है और बी 5 हार्मोंस को संतुलित रखता है।

  • एंटीऑक्सीडेंट

एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर सफेद मशरूम में कई फायदेमंद एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं। ये एंटीऑक्सींडेंट आनुवांशिक बीमारियों के खतरे को कम कर देते हैं। इसमें एरगोस्टेसरॉल्सय भी होता है जोकि एक तरह का एंटीऑक्सी डेंट है। ये घातक बीमारियों से बचाने में मदद करता है।

  • कैंसर से बचाव

सफेद मशरूम ब्रेस्ट और कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर से भी बचाने में मदद करता है। इसमें मौजूद लिनोलेइक एसिड ओस्ट्रो जन की अधिकता से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने में मदद करता है। मशरूम में बीटा ग्लूजकन होता है जोकि प्रोस्टे्ट कैंसर के मामले में कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है।

Information taken from internet.

Article By – Vikram Market.

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