Tag: खेती किसानी में गौमूत्र का उपयोग

OrganicFarming_गौमूत्र का उपयोग

OrganicFarming_गौमूत्र का उपयोग Organic Farming

OrganicFarming_गौमूत्र का उपयोग Gobar Compost : भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का अहम योगदान है और कृषि में गायों का एक अहम रोल है। देश में खेती के साथ-साथ पशुपालन करना एक आम बात है, ग्रामीण इलाकों में गाय पालन एक कमाई का बहुत बड़ा जरिया है। इन दिनों गाय के मूत्र से कीटनाशक तैयार किया जा रहा है। अब तक किसान केवल गाय के दूध का व्यवसाय करके मुनाफा कमाते थे, लेकिन अब वे गोबर और गौमूत्र को भी बढ़िया आमदनी हासिल कर सकते हैं। इस संबंध में वैज्ञानिकों का मानना है कि रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से नष्ट हुई धरती को बचाने के लिए गोबर और गोमूत्र अमृत के समान हैं। इसके प्रयोग से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे खराब भूमि भी ठीक होने लगती है। गौमूत्र भी इस काम में अहम भूमिका निभाता है।   गोमूत्र में नाइट्रोजन, गंधक, अमोनिया, तांबा, यूरिया, यूरिक एसिड, फास्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीज, कार्बोलिक एसिड आदि पाए जाते हैं। उपरोक्त के अलावा लवण, विटामिन, ए,बी,सी,डी,ई, हिप्युरिक एसिड, क्रियाटिनिन, स्वर्ण क्षार पाए जाते हैं। गोमूत्र के विविध उपयोग हैं | Organic Gobar Ki Khad गोमूत्र के अनेक उपयोग हैं। देसी गायों (भारतीय मूल की) के एक लीटर मूत्र को एकत्र कर इसमें 40 लीटर पानी मिलाकर यदि खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, सब्जी आदि के बीजों को 4-6 घंटे उपरोक्त घोल में भिगोने के बाद खेत में बोने के लिए डाला जाता है तो ऐसे बीजों का जमाव शीघ्र होता है, अंकुरण बढ़िया तो होता ही है, पौधा मजबूत और निरोग भी होता है। यह फसल को सुरक्षा रसायन के रूप में अनेक प्रकार से और कई तरह के कीटों से बचाता है। कीटों के नियंत्रण के लिए 2-3 लीटर गोमूत्र को नीम की पत्तियों के साथ बंद डिब्बों में 15 दिनों तक रखकर सड़ाते हैं। सड़ने के बाद इसे छान लेते हैं और छाने हुए द्रव के 1 लीटर दवा में 50 लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से अनेक प्रकार के कीटों से फसल की सुरक्षा हो जाती है। उदाहरण के लिए पत्ती खाने वाला कीट, फल छेदने वाला कीट तथा छेदक कीट आदि। गोमूत्र मैं तम्बाकू की सहायता इसी प्रकार गोमूत्र एवं तम्बाकू की सहायता से भी कीटनाशक तैयार किया जाता है। इसक लिए 10 लीटर गोमूत्र में एक किलो तम्बाकू की सूखी पत्तियों को डालकर उसमें 250 ग्राम नीला थोथा घोलकर 20 दिनों तक बंद डिब्बों में रख देते हैं। फिर इसे निकालकर 1 लीटर दवा में 100 लीटर पानी मिलाकर घोल का छिड़काव करने से फसल का बालदार सूंडी से बचाव हो जाता है। इसका छिड़काव दोपहर में करना चाहिए। गोमूत्र मैं लहसुन की सहायता गोमूत्र और लहसुन की गंध के साथ कीटनाशक बनाकर रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए 10 लीटर गोमूत्र में 500 ग्राम लहसुन कूटकर उसमें 50 मिलीलीटर मिट्टी का तेल मिला देते हैं। मिट्टी के तेल और लहसुन के पेस्ट को गोमूत्र में डालकर 24 घंटे वैसे ही पड़ा रहने देते हैं। इसे बाद इसमें 100 ग्राम साबुन अच्छी तरह मिलाकर और हिलाकर महीन कपड़े से छान लेते हैं। एक लीटर इस दवा को 80 लीटर पानी में घोलकर, इस घोल के छिड़काव से फसल को चूसक कीटों से सुरक्षित रखा जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अलग-अलग फसलों और अलग-अलग कीटों के लिए अलग-अलग तरह की दवाएं बनाई जाती हैं। किन्तु, गोमूत्र और कुछ वनस्पतियों की सहायता एक ऐसे उत्तम किस्म की दवा तैयार की जाती है जो कई तरह की फसलों, कई तरह के कीटों और फसलों के कई तरह के रोगों में उपयोगी होता है। इस विशेष प्रकार के कीटनाशक के घोल के छिड़काव से कीटों, रोगों के अतिरिक्त नील गायों और जंगली जानवरों से भी फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। कैसे बनाएं कीटनाशक इस दवा को बनाने के लिए 20 लीटर गोमूत्र को देशी और वृद्ध गायों से एकत्र करके प्लास्टिक के बड़े डिब्बे अथवा ड्रम में डालकर उसमें 5 किलोग्राम नीम की ताजी तोड़ी गई पत्तियों को ड्रम में डाल देते हैं। इसके बाद दो किलोग्राम धतूरा पंचांग अर्थात धतूरे की जड़, पत्ती, फूल, फल आदि डाल देना चाहिए। किन्तु, ध्यान रहे कि धतूरा पंचांग पहले सुखाकर रखना चाहिए और सूखा डालना चाहिए। फिर दो किलोग्राम मदार जो मदार पंचांग या पत्ती को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर डालने के बाद 500 ग्राम लहसुन को कूटर कर डाल देना चाहिए। लहसुन के बाद 250 ग्राम तम्बाकू की पत्तियों को डालें और अंत में 250 ग्राम लाल मिर्च पाउडर डाल देते हैं। राख या पाउडर को डिब्बों में किसी लकड़ी से हिलाकर बंद कर देते हैं। बंद डिब्बे को खुले में रख देते हैं। दिन में धूप पड़ती है और रात में ओस। यह प्रक्रिया 40 दिनों में पूरी हो जाती है। इस डिब्बे में बंद राख सड़ जाती है। 40 दिनों बाद कपड़े की सहायता से इसे छान लेते हैं, क्योंकि सड़ने के बाद गीला हो जाता है। छानने के बाद द्रव को तो फसल पर प्रयोग करने से यह रसायन की भांति फसल को सुरक्षा प्रदान करती है और छानने के बाद जो सूखा पदार्थ बचता है, उसे दीमक के नियंत्रण के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। फसल पर प्रभाव इस्तेमाल के पूर्व छने द्रव के एक लीटर रसायन को 80 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अनेक लाभ हैं। यह फसल को कुतर कर या काटकर खाने वाले, फसल की पत्तियों में छेद करने वाले या उसका रस चूसने वाले कीड़ों से बचाव तो करता ही है, फसल को नीलगायों, जंगली भैंसों या जंगली सांडों से भी सुरक्षित रखता है और ये फसल को हानि नहीं पहुॅंचा पाते हैं। गोमूत्र कीटनाशक से फसलों को नाइट्रोजन जैसे पोषक पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। छिड़काव में भी कम मात्रा का उपयोग करना पड़ता है। छिड़काव से फसल लहलहाने लगती है। रोगों का प्रकोप कम होता है और सामग्री के लिए शहर नहीं जाना पड़ता, क्योंकि यह गांवों में ही आसानी से मिल जाती है। इस दवा का प्रयोग मक्का, तम्बाकू, कपास, टमाटर, दलहन, गेंहू, धान, सूरजमुखी, केला, भिंडी, गन्ना आदि पर किया जा सकता है और सफलता भी प्राप्त

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