काजू फल : काजू खाने के 8 कमाल के फायदे – Farming महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा एवं पं. बंगाल में काजू की खेती की जाती है । महाराष्ट्र में, काजू व्यापक रूप से कोंकण में उगाया जाता है। काजू एक निर्यात फल है। काजू की भारत और विदेशों में काफी मांग है। भारत दुनिया के काजू का लगभग 60% निर्यात करता है। काजू के उपयोग और महत्व को समझते हुए भविष्य में काजू का निर्यात बढ़ेगा। काजू के नाम – kaju Name काजू को अंग्रेजी मैं कश्यु ( Cashew ) हिंदी में “हिज्जली बादाम कन्नड़ में “गेरू मलयालम में “कचुमक” तेलुगु में “जिदिमा मिडी” कहा जाता है। काजू के व्यंजन और इस्तमाल काजू से कई तरह की वाइन और जूस बनाया जा सकता है। जिसमें गोवा की “काजू फेनी” बहुत प्रसिद्ध है। गोवा काजू उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। काजू से काजू तेल निकाला जाता है। यह तेल सौंदर्य प्रसाधनों में उपयोगी है। काजू तेल भी भारत से बढे पैमाने पर निर्यात किया जाता है। काजू को सूखे मेवे के रूप में माना जाता है, इसलिए इसे लड्डू, शिरा, पुलाव आदि जैसे व्यंजनों में शामिल किया जाता ह। काजू सभी मिठाइयों में इस्तेमाल किया जाता हैं। काजू के पेड़ – Cashew Tree Nut – काजू का पेड़ एक बहुत हीं तीव्रता से बढ़ने वाला उष्णकटिबंधीय वृक्ष होता है । काजू का पेड़ पतला और मोटा होता है। इस पौधे का विस्तार अधिक है। पत्ते बड़े और अंडाकार होते हैं। काजू के दो भाग होते हैं, बोंडू और काजू। बोंडू एक पीला कवक और रसदार फल है। काजू एक आम के कुल का पेड़ है और इसका शास्त्रीय नाम एनाकार्डियम ऑक्सीडेंटल है। इतिहासकारों का कहना है की पुर्तगाली इसे भारत ले आए, काजू शब्द भी पुर्तगाली है। सन 1563 से लेकर 1570 के बीच पुर्तगाली ही इसे सबसे पहले गोवा ले कर आये और वहां इसका प्रोडक्शन शुरू करवाया । काजू खाने के फायदे – Cashews For Health * प्रत्येक 100 ग्राम काजू 590 कैलोरी प्रदान करता है। * काजू के सेवन से हमारी हड्डिया और भी मजबूत होती है | * काजू हृदय रोग और मधुमेह को रोकने में मददगार है * काजू खाने से हमारी त्वचा चमकदार और मुलायम रहती है | * काजू के नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। * काजू का सेवन आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। * काजू में फाइबर की मात्रा मौजूद होने से ये हमारे पाचन को सुधारने का काम कर सकता है. काजू खाने से गैस और कब्ज की समस्या से भी राहत मिल सकती है। Article By.- VikramMarket
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जैविक खेती | केंचुवों की सहायता से मिटटी को कैसे अच्छे बनाये | organic farming
प्रस्तावना – जैविक खेती की समज और केंचुवों की सहायता से मिटटी को कैसे अच्छे बना सकते है आज के समय मैं जैविक खेती के महत्व को सभी जानते है , पर जैविक खेती कोई नहीं करना चाहता , और जैविक खेती करना ही आने वाली पीढ़ी को वरदान होगा , अन्यथा रासायनिक खेती उनके लिए शाप बनकर रेहजाएगी, और वो हमें कोसेंगी । ऐसा नहीं की जैविक खेती कोई करता ही नहीं – जैविक खेती बोहत सारे किसान भाई करते है । और कुछ करना चाहते है , पर उनके पास ज्यादा जानकारी नहीं होती । तो आज इसी जैविक खेती और केंचुवों की सहायता से मिटटी को कैसे अच्छे बना सकते है ये जानेंगे । जैविक खेती जैविक खेती ही भारत और मनुष्य की शुरवाती कड़ी रही है जो उसे अपना पेट भरने मैं मदद करती आ रही है । शुरवात से ही भारतवासी खेती पर ही अपना प्रपंच चलता आरहा है , पर समय की परत पर धन की चाहत ने इसे दूषित कर दिया । कहते है की जैविक खेती की यह परम्परागत खेती आजादी तक भारत में की जाती रही है। बाद जनसख्याँ विस्फोट कारण देश में उत्पादन बढ़ाने का दबाव बना जिसके कारण देश रासयनिक खेती की और अग्रसर हुआ और अब इसके बुरे परिणाम सामने आने लगे है । जैसे उम्र से पहले बूढ़े दिखना , 60 – 70 की आयु मैं ही मृत्यु होना । बच्चों की हाइट न बढ़ना , तरह तरह के रोग – बीमारिया होना । ये सब इसी की देन है । रासायनिक खेती हानिकारक के साथ-साथ बहुत महंगी भी पढ़ती है जिससे फसल उत्पादन के दाम बढ़ जाते हैं इसके लिए अब देश दोबारा से जैविक खेती की और अग्रसर हो रहा है क्योंकि जैविक खेती कृषि पद्धति रसायनिक कृषि की अपेक्षा सस्ती, स्वावलम्बी व स्थाई है। केंचुआ और मिटटी का रिश्ता हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि भूमि में पाये जाने वाले केंचुए मनुष्य के लिए बहुपयोगी होते हैं | भूमि में पाये जाने वाले केंचुए खेत में पढ़े हुए पेड़-पौधों के अवशेष एवं कार्बनिक पदार्थों को खा कर छोटी-छोटे गोलियों के रूप में परिवर्तित कर देते हैं जो पौधों के लिए देशी खाद का काम करती है | इस केंचुए से छोटे से स्थान में 2 माह में कई हैक्टेयर के लिए खाद तैयार किया जा सकता है | इस खाद को तैयार करने के लिए केंचुआ, मिटटी तथा खरपतवार की जरुरत पड़ती है , जो आसानी से मिल जाता है | Note-: Some of this information is taken from internet. But it’s all True Article By – Vikram Shinde
जैविक खेती की आवश्यकता / अन्यथा विनाश
जैविक खेती की आवश्यकता / अन्यथा विनाश पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से त्रस्त है, और मनुष्य सोचता है कि यह बहुत बड़ा संकट है, एक न एक दिन इस महामारी का कोई न कोई समाधान जरूर निकलेगा, “लेकिन आने वाले भविष्य को देखो_जो संकट हम खुद पैदा कर रहे हैं, पूरी मानव जाति को दफनाने के लिए खुद को तैयार कर रहा है। वास्तव में, हम इसे खाद दे रहे हैं – इसे पढ़ें और आपको पता चल जाएगा ….. वर्तमान में उत्पादन में तत्काल वृद्धि को पाने के लिए कृषि में रासायनिक उर्वरकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। फसलों पर रोगों, कीटों और कवक को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। इनके इस्तेमाल से खेती की तकनीक में काफी बदलाव आया है और हमारी खेती रासायनिक हो गई है। इन रासायनिक उर्वरकों और दवाओं का उपयोग इतना व्यापक हो गया है कि लोगों को यह समझ में आ गया है कि उनका उपयोग अपरिहार्य है।वास्तव में रासायनिक उर्वरकों की खोज पिछले 70-80 वर्षों में हुई है। भारत में पिछले 40 सालों में इनका इस्तेमाल बढ़ा है। क्या उसके पहले भारत में कृषि नहीं थी? कृषि की परंपरा 10,000 साल पुरानी है।यानी बिना रासायनिक खाद के खेती की जा सकती है। वास्तव में, यह १०,००० वर्षों से ऐसा कर रहा है, और इसका उपयोग कृषि रसायनों के उपयोग के बिना किया गया है। गैर-रासायनिक खेती को जैविक खेती कहा जाता है। जैविक खेती कृषि उत्पादों को निकालने के लिए रसायनों के उपयोग के बिना प्रकृति से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ का उपयोग करती है।हम इसे परंपरा के अनुसार करते रहे हैं और हम खाद के रूप में बहुत सारे गोबर और मलमूत्र का उपयोग करते रहे हैं। एक बार फिर उन्हीं जैविक साधनों से खेती करना जैविक खेती है। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से खेत में केंचुओं की संख्या कम हो जाती है। परंपरागत रूप से कहा जाता है कि केंचुआ किसानों का मित्र होता है लेकिन मध्यकाल में इसे नजरअंदाज कर दिया गया। लेकिन केंचुए हैं किसानों के दोस्त है। इस कहावत का बड़ा अर्थ है। केंचुए खेत की मिट्टी को मुलायम कर देते हैं और खेत की जुताई का खर्च बचा लेते हैं। दूसरा काम जो उन्होंने किया वह था मिट्टी को मुलायम करना ताकि मिट्टी में फसल की जड़ों की आवाजाही आसान हो और जड़ें आसानी से मिट्टी में गहराई तक जा सकें और भोजन और पानी को अवशोषित कर सकें। फसल की वृद्धि अच्छी होती है जब जड़ें ऐसे भोजन और पानी को अवशोषित करती हैं। इसका मतलब है कि फसल केंचुओं के वजह से बहेतर बनती है। चूंकि केंचुए की आंखें नहीं होती हैं, इसलिए वे जो कुछ भी छू सकते हैं, खाएंगे और खाएंगे, जो मिट्टी के अंदर के कीटाणुओं को भी मार देंगे। इससे फसलों पर रोगों का प्रकोप कम होता है और महँगे छिड़काव की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। इसका मतलब है कि कीड़े किसानों की उत्पादन लागत बचाते हैं। केंचुए जैविक खेती का एक महत्वपूर्ण घटक हैं।एक और बात यह है कि जैविक खाद बनाने के लिए खेत की उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। वह अपना समय बर्बाद कर रहा है। लेकिन अगर उनका उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है, तो रासायनिक उर्वरक खरीदने की कोई जरूरत नहीं है और किसानों का पैसा बच जाता है। केंचुए के पेट में एक खास तरह की भट्टी होती है।उस भट्टी से वह जिस मिट्टी को खाता है उसमें नाइट्रोजन मिलाया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि केंचुए भी यूरिया के मुक्त आपूर्तिकर्ता हैं। इससे किसानों के पैसे की भी बचत होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रासायनिक खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन फसल के शरीर में और अनाज में मिल जाते हैं, और जब हम उस अनाज को खाते हैं, तो अवशोषित होने वाले विषाक्त पदार्थ अनाज से हमारे पेट में चले जाते हैं और हमारे शरीर पर बड़े घातक प्रभाव डालते हैं।इससे कई बीमारियां फैलती हैं। हाल के दिनों में, इन प्रभावों पर ध्यान देना शुरू हो गया है, और यही कारण है कि लोग रासायनिक खेती के बजाय जैविक कृषि उत्पादों की अधिक मांग कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जैविक खेती के उत्पाद गैर विषैले होते हैं। लोगों ने इस पर गौर किया है। ऐसे में जैविक खेती हमारे हित में होगी। देखो, सोचो, अपने खेती मैं अमल करो – अन्यथा विनाश के लिए तैयार होजाइये।