Okra Farming_भिंडी की खेती Lady Finger Farming: भिंडी हर किसी के खाने में होती है। कम ही लोग होंगे जिन्हें भिंडी पसंद नहीं होगी। इसलिए इस सब्जी की हमेशा डिमांड रहती है। नतीजतन, भिंडी की खेती किसानों के लिए लाभदायक है।हमारे देश की जलवायु इस फसल के अनुकूल है और निर्यात योग्य भिंडी उत्पादन की काफी गुंजाइश है। इसके लिए उपयुक्त किस्म का चयन, जैविक खाद का प्रयोग, रोग एवं कीट नियंत्रण, कटाई, रख-रखाव तथा निर्यात निरंतरता महत्वपूर्ण हैं। भेंडी की खेती कब कर सकते है ? चूंकि महाराष्ट्र में जलवायु भिंडी की खेती के लिए अनुकूल है, भिंडी की खेती तीनों मौसमों में की जा सकती है। भिंडी जून-जुलाई माह में बरसात के मौसम में लगानी चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि रबी मौसम में बुआई सर्दी के शुरू होने से पहले की जाए और गर्मी के मौसम में बिजाई 15 जनवरी से फरवरी के अंत तक की जाए। खेती की तैयारी भिंडी को लगाने के लिए खेत को हैरो से कम से कम दो बार गहरी जुताई करके पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत समतल हो जाये। इसके बाद उसमे गोबर की बनी हुई खाद डाल के मिला देना चाहिए. खेत की मिट्टी भुरभुरी और पर्याप्त नमी वाली होनी चाहिए। भिंडी को उगले मैं कितना वक्त लगता है ? जब आप भिंडी को खेत में पर्याप्त नमी के साथ लगाते हैं तो इस बीज को अंकुरित होने में 7 से 10 दिन का समय लगता है। इसका समय कम या ज्यादा मौसम, बीज की गुणवत्ता ,जमीन उपजाऊ शक्ति, बीज की गहराई आदि पर निर्भर करता है। सिंचाई कब करनी चाइये ? इसके बीजो को आद्रता युक्त मिट्टी में रोपाई की जाती है, इसलिए इसके बीजो को तुरंत सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | सबसे पहले इसके पौधों की सिंचाई 10 से 15 दिन के अंतराल में की जाती है, और यदि गर्मी अधिक हो रही है, तो सप्ताह में दो सिंचाई करनी चाहिए | बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही पानी दें | कौन कौन से रोग लग सकते है ? भिंडी की फसल में कई तरह के रोग पाए जाते है, इसलिए समय- समय पर इसकी देखभाल करते रहना चाहिए | जिससे की इसकी पैदावार को नुकसान न हो | इसमें लगने वाले रोगों की जानकारी कुछ इस प्रकार है- फल छेदक रोग पीत शिरा कीट रोग चूर्णिल आसिता कीट रोग लाल मकड़ी रोग भेंडी की खेती से कितना लाभ हो सकता है ? भिंडी की फसल को करके किसान भाई कम खर्च में अच्छी कमाई कर सकते है | अलग-अलग किस्मो के अनुसार इसकी औसत पैदावार 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर पायी जाती है | बाजार में भिंडी का मूल्य 10 से 30 रूपये प्रति किलो होता है, इस तरह से एक बार में भिंडी की खेती कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डेढ़ से दो लाख तक की कमाई कर सकते है | Article By.- VikramMarket. [recent_post_slider design=”design-1″] सभी मार्किट भाव कृषि व्यवसाय पशुपालन
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भिन्डी की खेती | Bhindi ki kheti | Okra
भिन्डी की खेती | Bhindi ki kheti | Okra Bhindi ki खेती: हम हरि सब्जी की बात करे तो बाजार में भिन्डी की माग अधिक रहती है क्यो की इसे लोग ज्यादा पसंद करते है इसलिए इस खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा होता है । भिंडी एक उत्कृष्ट फल और सब्जी की फसल है भिंडी का फल कैल्शियम और आयोडीन से भरपूर होता है। महाराष्ट्र में भिंडी के तहत 8190 हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है। भिंडी की कटाई साल भर की जाती है। भिंडी एक लोकप्रिय सब्जी है। सब्जियों में भिंडी का प्रमुख स्थान है जिसे लोग लेडीज फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं। खेती और हवामान भिंडी को हल्की से मध्यम और भारी मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन पानी की निकासी अच्छी होनी चाहिए। हालांकि भिंडी को साल भर उगाया जाता है, लेकिन यह खरीफ और गर्मी के मौसम में अच्छा करता है। फसल 20 से 40 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पनपती है। पानी की कमी के कारण भिंडी की पैदावार अन्य सब्जियों से बेहतर होती है। गर्मियों में जब सब्जियों की कमी हो जाती है तो बाजार में भिंडी की काफी मांग रहती है। भिंडी के लिये दीर्घ अवधि का गर्म व नम वातावरण श्रेष्ठ माना जाता है। बीज उगने के लिये 27-30 डिग्री सेग्रे तापमान उपयुक्त होता है तथा 17 डिग्री सें.ग्रे से कम पर बीज अंकुरित नहीं होता। यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है। भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है। भूमि का पी0 एच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है। भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए। पूर्व-खेती और रोपण भूमि में एक हल और दो जोतने वाले और तीसरी खुदाई 50 गाड़ियाँ प्रति हेक्टेयर खाद से की जानी चाहिए। खरीफ के मौसम में बुवाई के लिए दो पंक्तियों के बीच की दूरी 60 सेमी होनी चाहिए। और गर्मी में 45 सें.मी. बीज को एक पंक्ति में दो पेड़ों के बीच 30 सेमी की दूरी के साथ बोया जाना चाहिए प्रत्येक स्थान पर दो बीज बोए जाने चाहिए। गर्मियों में वरम्बा के पेट में बीज बोना चाहिए। बुवाई के बाद खेत में बोने के बाद। निंदाई तथा गुडाई भिंडी की फसल में निराई तथा गुडाई बहुत जरुरी है | इससे खेत में खरपतवार नहीं होते हैं तथा उर्वरक देने में आसानी होता है | बुवाई के 15 से 20 दिन बाद प्रथम निंदाई – गुडाई करना चाहिए | कोशिश करें की खरपतवार के लिए कीटनाशक का प्रयोग नहीं करे | अगर कीटनाशक का प्रयोग करते हैं तो फ्ल्यूक्ल्रेलिन की 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से पर्याप्त नाम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है उर्वरक और जल प्रबंधन ( खत ) बुवाई के समय 50-50-50 किग्रा०/हेक्टेयर नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश मिट्टी में मिलाना चाहिए तथा नाइट्रोजन की दूसरी किश्त 50 किग्रा/हेक्टेयर की दर से बुवाई के एक माह की अवधि तक देना चाहिए। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें। उसके बाद 5 से 7 दिनों के अंतराल पर पानी देना चाहिए। कीट से पौधों की बचाव प्ररोह एवं फल छेदक :- इसकी लक्ष्ण यह है की इस कीट का प्रकोप वर्षा ऋतु में अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे तना सूख जाता है। फूलों पर इसके आक्रमण से फल लगने के पूर्व फूल गिर जाते है। फल लगने पर इल्ली छेदकर उनको खाती है जिससे फल मुड जाते हैं एवं खाने योग्य नहीं रहते है | रोकथाम :- रोकथाम हेतु क्विनॉलफॉस 25 प्रतिशत ई.सी., क्लोरपाइरोफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. अथवा प्रोफेनफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. की 2.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी के मान से छिडकाव करें तथा आवयकतानुसार छिडकाव को दोहराएं | हरा तेला, मोयला एवं सफेद मक्खी:- इस कीट का लक्षण यह है की ये सूक्ष्म आकार के कीट पत्तियों, कोमल तने एवं फल से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते है | रोकथाम :- रोकथाम हेतु आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाइक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. अथवा एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराए । रेड स्पाइडर माइट यह माइट पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर भारी संख्या में कॉलोनी बनाकर रहता हैं। यह अपने मुखांग से पत्तियों की कोशिकाओं में छिद्र करता हैं । इसके फलस्वरुप जो द्रव निकलता है उसे माइट चूसता हैं। क्षतिग्रस्त पत्तियां पीली पडकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं। अधिक प्रकोप हो ने पर संपूर्ण पौधे सूख कर नष्ट हो जाता हैं। रोकथाम :- इसकी रोकथाम हेतु डाइकोफॉल 18.5 ई. सी. की 2.0 मिली मात्रा प्रति लीटर अथवा घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराए । भेंडी की कुछ किस्मे कस्तूरी भिंडी की खेती/ kasturi bhindi ki kheti कस्तूरी भिंडी वनों ओर जगलो में पाई जाती है अरब देसो में कस्तूरी भिंडी की सबसे ज्यादा मांग रहती है कस्तूरी भिंडी सुगधित होने के कारण इत्र जगत में प्रचलित है इनके पुष्प पिले रग के पखुडियो के बीच हल्का बैगनी रग अत्यंत आकर्षक लगता है इसकी बुवाई आम भिन्डी की तरह की जाती है वह बुवाई के तुंरत बाद सिचाईं की जरूरत पड़ती है अधिक पैदावार के लिए महीने में 2 बार सिचाईं करनी आवश्यक है इसकी खेती करने में 5000 स्व 6000 तक खर्चा आता है वह औसत पैदावार 40000 स्व 45000 तक हो जाती है उसकी मांग ज्यादातर ओषधिय मार्केट तथा इत्र निर्माताओं में निरतंर बढ़ती जा रही हैं कस्तूरी भिंडी में रोग नियंत्रण ज्यादातर वर्षा काल के बाद तने काटने वाले किटो का प्रकोप बढ़ता है जो ऊपर से मुह को काट देता है वर्षा के बाद पोधे गलने लग जाते हैं इसकी रोकथाम के लिए इफको का EGAO किट नियंत्रण ओर KAGUYA गलने से बचने में प्रयोग किया जाता है लाल भिंडी की खेती/ lal bhindi ki kheti लाल रंग की भिन्डी पोषक