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Agaricus bisporus – सफेद मशरूम की खेती, मशरूम का बीज, फायदे 

Agaricus bisporus – सफेद मशरूम की खेती, मशरूम का बीज, फायदे  Agaricus bisporus - सफेद मशरूम की खेती Green and White Quotes Instagram Post

सफेद मशरूम | सफेद मशरूम की खेती | मशरूम का बीज कहा से मिलता है | सफेद मशरूम खाने के फायदे Agaricus bisporus – सफेद मशरूम की खेती, मशरूम का बीज, फायदे : ऐसा फल जो आपको लाखो कमा कर देगा। इस फल का नाम सफेद व्हाइट मशरूम है ।पिछले कुछ वर्षों में किसानों का रुझान मशरूम की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है, मशरूम की खेती बेहतर आमदनी का जरिया बन सकती है। इसे हिंदी मैं खुंबी कहते है। इस फल को खुंबी क्यू कहते हैं – आपको गाय का दूध मालूम ही हो  गा उस दूध का जो रंग होता है वही रंग इस फल को होता है , और यह फल धूप में सुखाने पर उसका जो सफेद रंग होता है उसमे ज्यादा बदलाव हमे नजर नहीं आता। यह गर्मी के मौसम आने वाला फल है । इस फल सबसे पहले हमारे भारत के जगलोमे पाए गए थे।विश्व में मशरूम की खेती हजारों वर्षों से की जा रही है, जबकि भारत में मशरूम के उत्पादन का इतिहास लगभग तीन दशक पुराना है। भारत में 10-12 वर्षों से मशरूम के उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। इस समय हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना व्यापारिक स्तर पर मशरूम की खेती करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य है। इस फल को अप्रैल और सितम्बर माह तक गिर्द क्षेत्रों खेती कर सकते है। यह उपज लेने केलिए तापमान को संतुलित रखना पड़ता है । जैसे तीस डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान पर अन्य खुंबी का नही की जा सकता है। पर हम आपको जो सफेद मशरूम के बारे बता रहे हैं इसको किसी भी तापमान में उगाया जा सकता है।इस कारण सफेद मशरूम की खेती मैं साल भर उत्पादन चक्र में हमे कोई भी परेशानी नही है।इसकी उपजा क्षमता 60-70 प्रतिशत तक होती है । दूध छत्ता आकार में काफी बडा होता है एवं अधिक समय तक खराब नहीं होती है । अलग-अलग राज्यों में किसान मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, कम जगह और कम समय के साथ ही इसकी खेती में लागत भी बहुत कम लगती है, जबकि मुनाफा लागत से कई गुना ज्यादा मिल जाता है। मशरूम की खेती के लिए किसान किसी भी कृषि विज्ञान केंद्र या फिर कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण ले सकते हैं।   सफेद मशरूम की खेती सफेद मशरूम की खेती के लिए सबसे ज़रूरी काम गेहूं या धान का भूसा को रोग मुक्त करने 80°तापमान पर पानी में उबालना है। फिर ट्र में भरकर बीज को डाल देना है। तीन सप्ताह के बाद केसिंग करने की जरूरत होती है। इसके बाद मशरूम की पैदावार होती है।इस भूसे को सर्वप्रथम उपचारित कर तैयार करना पड़ता है। जिससे उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवों को नष्ट किया जा सके । इन सूक्ष्म जीवों की वजह से खुंभी कवकजाल फैलता नहीं हैं तथा अच्छी पैदावार नहीं मिलती । भूसे की उपचार की मुख्यतः तीन विधियों हैं । गर्म पानी द्वारा, भाप द्वारा एवं रसायन द्वारा । सफेद बटन मशरूम उत्पादन की प्रौद्योगिकी उत्तरी भारत में सफेद बटन मशरुम की मौसमी खेती करने के लिए अक्तूबर से मार्च तक का समय उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान मशरूम की दो फसलें ली जा सकती हैं। बटन मशरूम की खेती के लिए अनुकूल तापमान 15-22 डिग्री सेंटीग्रेट एवं सापेक्षित आद्रता 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए।  विश्व में खाने योग्य मशरुम की लगभग 10000 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 70 प्रजातियां हीं खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। भारतीय वातावरण में मुख्य रुप से पांच प्रकार के खाद्य मशरुमों की व्यावसायिक स्तर पर खेती की जाती है। 1 } सफेद बटन मशरुम 2 } ढींगरी (ऑयस्टर) मशरुम 3 }  दूधिया मशरुम 4 }  पैडीस्ट्रा मशरुम 5 } शिटाके मशरुम भारत में सफेद मशरुम की खेती पहले निम्न तापमान वाले स्थानों पर की जाती थी, लेकिन आजकल नई तकनीकियों को अपनाकर इसकी खेती अन्य जगह पर भी की जा रही है। सरकार द्वारा सफेद बटन मशरूम की खेती के प्रचार-प्रसार को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। भारत में अधिकतर सफेद बटन मशरुम की एस-11, टीएम-79 और होर्स्ट यू-3 उपभेदों की खेती की जाती है। बटन मशरूम के कवक जाल के फैलाव के लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इस तापमान पर कवक जाल बहुत तेजी से फैलता है। बाद में इसके लिए 14-18 डिग्री सेल्सियस तापमान ही उपयुक्त रहता है। इसको हवादार कमरे, सेड, हट या झोपड़ी में आसानी से उगाया जा सकता है। मशरूम का बीज कहा से मिलता है – मशरुम की खेती में प्रयोग होने वाले बीज को स्पॉन कहते हैं। मशरुम की अधिक पैदावार लेने के लिए बीज शुद्ध व अच्छी किस्म का होना चाहिए। मशरुम की चयनित प्रभेदों के फलने वाले सम्वर्धन (कल्चर) से उत्पन्न स्पॉन का उत्पादन जीवाणु रहित वातावरण में किया जाता है। उच्चतम उत्पादन देने वाले संवर्धन को अन्य स्थानों से मंगवाकर अपने यहां प्रयोगशाला में स्पॉन तैयार कर सकते हैं। स्पॉन की अधिकतम मात्रा कम्पोस्ट के ताजे भार के 0.5-0.75 प्रतिशत पर्याप्त होती है। निम्न स्तर की कम्पोस्ट में माइसीलियम का फैलाव कम होता है। अच्छी किस्म का बीज प्राप्त करने के लिए कम से कम एक माह पहले विश्वविद्यालय के पादप रोग विज्ञान विभाग में बुकिंग करा देनी चाहिए, जिससे समय पर बीज तैयार करके आपको दिया जा सके। उन्नति किस्म के स्पॉन को सुविधा अनुसार निम्नलिखित प्रयोगशालाओं से प्राप्त किया जा सकता है। खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश, डॉ यशवंत सिंह परमार बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन (हिमाचल प्रदेश), पादप रोग विज्ञान विभाग, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा), बागवानी निदेशालय, मशरूम स्पॉन प्रयोगशाला, कोहिमा, कृषि विभाग, मणिपुर, इम्फाल, सरकारी स्पॉन उत्पादन प्रयोगशाला, बागवानी परिसर, चाउनी कलां, होशियारपुर (पंजाब), विज्ञान समिति, उदयपुर (राजस्थान), क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला, सीएसआईआर, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर), कृषि विभाग, लालमंडी, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर), पादप रोग विज्ञान विभाग, जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (मध्य प्रदेश), पादप रोग विज्ञान विभाग, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट (असम), क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केन्द्र, धौलाकुआं (हिमाचल प्रदेश), हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय स्पॉन प्रयोगशाला, पालमपुर (हिमाचल प्रदेश), इन सरकारी स्पॉन उत्पादन केन्द्रों के अलावा बहुत से निजी व्यक्ति भी मशरूम बीज उत्पादन से जुड़े हैं

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