OrganicFarming_गौमूत्र का उपयोग Gobar Compost : भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का अहम योगदान है और कृषि में गायों का एक अहम रोल है। देश में खेती के साथ-साथ पशुपालन करना एक आम बात है, ग्रामीण इलाकों में गाय पालन एक कमाई का बहुत बड़ा जरिया है। इन दिनों गाय के मूत्र से कीटनाशक तैयार किया जा रहा है। अब तक किसान केवल गाय के दूध का व्यवसाय करके मुनाफा कमाते थे, लेकिन अब वे गोबर और गौमूत्र को भी बढ़िया आमदनी हासिल कर सकते हैं। इस संबंध में वैज्ञानिकों का मानना है कि रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से नष्ट हुई धरती को बचाने के लिए गोबर और गोमूत्र अमृत के समान हैं। इसके प्रयोग से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे खराब भूमि भी ठीक होने लगती है। गौमूत्र भी इस काम में अहम भूमिका निभाता है। गोमूत्र में नाइट्रोजन, गंधक, अमोनिया, तांबा, यूरिया, यूरिक एसिड, फास्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीज, कार्बोलिक एसिड आदि पाए जाते हैं। उपरोक्त के अलावा लवण, विटामिन, ए,बी,सी,डी,ई, हिप्युरिक एसिड, क्रियाटिनिन, स्वर्ण क्षार पाए जाते हैं। गोमूत्र के विविध उपयोग हैं | Organic Gobar Ki Khad गोमूत्र के अनेक उपयोग हैं। देसी गायों (भारतीय मूल की) के एक लीटर मूत्र को एकत्र कर इसमें 40 लीटर पानी मिलाकर यदि खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, सब्जी आदि के बीजों को 4-6 घंटे उपरोक्त घोल में भिगोने के बाद खेत में बोने के लिए डाला जाता है तो ऐसे बीजों का जमाव शीघ्र होता है, अंकुरण बढ़िया तो होता ही है, पौधा मजबूत और निरोग भी होता है। यह फसल को सुरक्षा रसायन के रूप में अनेक प्रकार से और कई तरह के कीटों से बचाता है। कीटों के नियंत्रण के लिए 2-3 लीटर गोमूत्र को नीम की पत्तियों के साथ बंद डिब्बों में 15 दिनों तक रखकर सड़ाते हैं। सड़ने के बाद इसे छान लेते हैं और छाने हुए द्रव के 1 लीटर दवा में 50 लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से अनेक प्रकार के कीटों से फसल की सुरक्षा हो जाती है। उदाहरण के लिए पत्ती खाने वाला कीट, फल छेदने वाला कीट तथा छेदक कीट आदि। गोमूत्र मैं तम्बाकू की सहायता इसी प्रकार गोमूत्र एवं तम्बाकू की सहायता से भी कीटनाशक तैयार किया जाता है। इसक लिए 10 लीटर गोमूत्र में एक किलो तम्बाकू की सूखी पत्तियों को डालकर उसमें 250 ग्राम नीला थोथा घोलकर 20 दिनों तक बंद डिब्बों में रख देते हैं। फिर इसे निकालकर 1 लीटर दवा में 100 लीटर पानी मिलाकर घोल का छिड़काव करने से फसल का बालदार सूंडी से बचाव हो जाता है। इसका छिड़काव दोपहर में करना चाहिए। गोमूत्र मैं लहसुन की सहायता गोमूत्र और लहसुन की गंध के साथ कीटनाशक बनाकर रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए 10 लीटर गोमूत्र में 500 ग्राम लहसुन कूटकर उसमें 50 मिलीलीटर मिट्टी का तेल मिला देते हैं। मिट्टी के तेल और लहसुन के पेस्ट को गोमूत्र में डालकर 24 घंटे वैसे ही पड़ा रहने देते हैं। इसे बाद इसमें 100 ग्राम साबुन अच्छी तरह मिलाकर और हिलाकर महीन कपड़े से छान लेते हैं। एक लीटर इस दवा को 80 लीटर पानी में घोलकर, इस घोल के छिड़काव से फसल को चूसक कीटों से सुरक्षित रखा जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अलग-अलग फसलों और अलग-अलग कीटों के लिए अलग-अलग तरह की दवाएं बनाई जाती हैं। किन्तु, गोमूत्र और कुछ वनस्पतियों की सहायता एक ऐसे उत्तम किस्म की दवा तैयार की जाती है जो कई तरह की फसलों, कई तरह के कीटों और फसलों के कई तरह के रोगों में उपयोगी होता है। इस विशेष प्रकार के कीटनाशक के घोल के छिड़काव से कीटों, रोगों के अतिरिक्त नील गायों और जंगली जानवरों से भी फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। कैसे बनाएं कीटनाशक इस दवा को बनाने के लिए 20 लीटर गोमूत्र को देशी और वृद्ध गायों से एकत्र करके प्लास्टिक के बड़े डिब्बे अथवा ड्रम में डालकर उसमें 5 किलोग्राम नीम की ताजी तोड़ी गई पत्तियों को ड्रम में डाल देते हैं। इसके बाद दो किलोग्राम धतूरा पंचांग अर्थात धतूरे की जड़, पत्ती, फूल, फल आदि डाल देना चाहिए। किन्तु, ध्यान रहे कि धतूरा पंचांग पहले सुखाकर रखना चाहिए और सूखा डालना चाहिए। फिर दो किलोग्राम मदार जो मदार पंचांग या पत्ती को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर डालने के बाद 500 ग्राम लहसुन को कूटर कर डाल देना चाहिए। लहसुन के बाद 250 ग्राम तम्बाकू की पत्तियों को डालें और अंत में 250 ग्राम लाल मिर्च पाउडर डाल देते हैं। राख या पाउडर को डिब्बों में किसी लकड़ी से हिलाकर बंद कर देते हैं। बंद डिब्बे को खुले में रख देते हैं। दिन में धूप पड़ती है और रात में ओस। यह प्रक्रिया 40 दिनों में पूरी हो जाती है। इस डिब्बे में बंद राख सड़ जाती है। 40 दिनों बाद कपड़े की सहायता से इसे छान लेते हैं, क्योंकि सड़ने के बाद गीला हो जाता है। छानने के बाद द्रव को तो फसल पर प्रयोग करने से यह रसायन की भांति फसल को सुरक्षा प्रदान करती है और छानने के बाद जो सूखा पदार्थ बचता है, उसे दीमक के नियंत्रण के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। फसल पर प्रभाव इस्तेमाल के पूर्व छने द्रव के एक लीटर रसायन को 80 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अनेक लाभ हैं। यह फसल को कुतर कर या काटकर खाने वाले, फसल की पत्तियों में छेद करने वाले या उसका रस चूसने वाले कीड़ों से बचाव तो करता ही है, फसल को नीलगायों, जंगली भैंसों या जंगली सांडों से भी सुरक्षित रखता है और ये फसल को हानि नहीं पहुॅंचा पाते हैं। गोमूत्र कीटनाशक से फसलों को नाइट्रोजन जैसे पोषक पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। छिड़काव में भी कम मात्रा का उपयोग करना पड़ता है। छिड़काव से फसल लहलहाने लगती है। रोगों का प्रकोप कम होता है और सामग्री के लिए शहर नहीं जाना पड़ता, क्योंकि यह गांवों में ही आसानी से मिल जाती है। इस दवा का प्रयोग मक्का, तम्बाकू, कपास, टमाटर, दलहन, गेंहू, धान, सूरजमुखी, केला, भिंडी, गन्ना आदि पर किया जा सकता है और सफलता भी प्राप्त
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Agriculture सोने के बदले धान
Future सोने के बदले धान | Agriculture News future of agriculture in India :- हमारे देश में हर दिन दो हजार एकड़ कृषि में गिरावट आ रही है। अभी जो दुनिया मैं धान की कमकरता दिख रही है, इससे यही प्रतीत होता है की भविष्य मैं ये और बढ़ ने वाली है । खेती के दिन बदलने वाले हैं। भविष्य मैं आगे चलकर खेती करने वालों की संख्या बोहत कम हो जाएगी , इसके पीछे बेमौसम बारिश – बढ़ती गर्मीऔर अन्य नैसर्गिक कारण होंगे’ – साथ साथ बढ़ते फ़र्टिलाइज़र के चलते मिटटी की कम होती सुपिक्ता भी एक प्रमुख वजह है । और ये संकट धीरे धीरे अपना भीषण रूप धारण करके पुरे भूखंड को निगल लेगा । अभी पूरी दुनिया मैं गेहू , चावल , की बढ़ी पैमाने पर कमकरता महसूस हो रही है । हमारे भारत का ही उदहारण देख लीजिये ; हमने अभी से गेहू का एक्सपोर्ट बंद कर दिया है । जिससे हमारे देश मैं गेहू की कमी न हो । रूस दुनिया का सबसे बढ़ा गेहू निर्यातक देश है , किन्तु रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से पाचात्य देशों ने उसपर निर्भंध लगा दिए है । इसी की वजह पूरी दुनिया मैं गेहू की कमी दिखी गयी है । दुनिया मैं ऐसे कई देश है , जहा गेहू की खेती नहीं की जाती – जो की अन्य देशों पर निर्भर करते है । बदलता मौसम ( weather ) पिछले कुछ सालों धरती का तापमान कुछ हद से ज्यादा बढ़ गया है – और बढ़ता ही जा रहा है । बेमौसम बारिश _ धरती मैं कम होती पानी का स्तर ये साफ दर्शाता है की , बोहत जल्द धरती की बोहत से उपजाऊ जमीन बंजर होने वाली है ( soil decline) । जिसका मतलब ये है की खाने के लाले और बढ़ेंगे । सोने के बदले धान भविष्य मैं खेती को सबसे अधिक महत्व रहने वाला है । एक दिन ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी कि आप मुट्ठी भर ‘ सोना लेकर अनाज का एक थैला’ दिया जायेगा। क्योंकि भविष्य मैं खेती के लिए उपजाऊ जमीं ना के बराबर होगी । इसी लिए जितना हो सके उतना ऑर्गनिक खेती ( Organic Farming ) करने का संभव प्रयत्न अवश्य करे , जिससे आने वाला हमारा भविष्य महफूज़ रहे । किन्तु इन सभी बातों को मध्यनज़र रखकर देखे , तो – इस बात मैं कोई दोराय नहीं की भविष्य मैं जिसके पास खेती और धान होगा , वो सबसे धनवान होगा । Article By.- VikramMarket.
ऑर्गेनिक टमाटर – 400 से 600 रूपये किलो, के “12 माह ” के टोमेटो
ऑर्गेनिक टोमेटो – ORGANIC TOMATO आपने चेरी और अंगूर जैसे स्वाद वाले टमाटरों का स्वाद चखा है? जी हां यह संभव है लेकिन जैविक खेती से। और इसकी मांग भी काफी है , कीमत 400 से 600 रूपये प्रति किलो है । यकीं नहीं होता ना ! पर ये सच और संभव भी , चेरी टमाटर की खेती मध्यप्रदेश के जबलपुर रहिवासी अंबिका पटेल जी ने इसका अविष्कार किया है ,और वो 12 माह टमाटर की फसल लेकर बोहत ही अच्छा मुनाफा कमा रहे है । अंबिका पटेल कई साल से चेरी टमाटर की खेती कर रहे है , उन्होंने ने ही इस प्रजाति का इजात किया है , उनका ये माल भारत के साथ साथ अमेरिका और दुबई मैं भी किया जाता है । ये पूरी तरह से जैविक है और विटामिन युक्त है , इसलिए इसकी दिन ब दिन मांग बढ़ती ही जा रही है । अंबिका पटेल जी का कहना है की आम टमाटर के मुकाबले इस चेरी टमाटर का बीज काफी छोटा होता है , इसलिए मुख्यता इसे कोको पिट वाले ट्रे मैं सिंचाई ड्राप विधि के साथ ही लगाना चाइये । चेरी टमाटर के फायदे | Cultivation of cherry tomato पटेल जी ने इस पर बड़ी मेहनत और शोध किये , फिर जाकर इस बीज की निर्मिति हुई । उनका मानना है की ये बाकि टमाटर के से अधिक विटामिन युक्त है , और साथ ही ये पूरा पिक जैविक है । इस टमाटर का स्वाद भी चेरी और अंगूर जैसा आता है । ( Organic Farming ) कैसे लगाए जाये ? अंबिका पटेल एक पॉलीहाउस मैं टमाटर ( Tomato ) का उत्पादन करते है जो बारह महीने के लिए 400 से 600 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है। ये टमाटर पॉलीहाउस मैं ही तैयार किया जाता है , पटेल जी का कहना है की इसकी खेती करना बोहत ही आसान है ! इसे कोको पिट वाले ट्रे मैं अंकुरित कर सकते है । फसल की पर्याप्त नमी के लिए जरुरी सिंचाई या फिर ड्राप स्रिप्कलिंग के सहारे इसकी खेती कर सकते है । इस टमाटर के पौधों की रोपाई 6 पतियों वाली करनी चाइये , पौधों की दुरी तक़रीबन 60 cm. रखनी चाइये और पंक्तियाँ की दुरी दो से डेढ़ मीटर तो रखनी चाइये । और खास कर टमाटर पौधों की रोपाई के बाद तुरंत सिचाई करनी चाइये । पैकिंग कैसे की जाती है ? ये फल जितना अनोखा और दिलचस्प है उतनाही इसकी पैकिंग भी । इसे अंगूर की पैकिंग जैसे की जाते है ठीक उसी तरह उसकी भी या फिर उससे अधिक ध्यान से करनी पड़ती है । इस टमाटर की फसल लेना काफी आसान है किन्तु इसे ठीक तरह से निर्यात करना हो तो बोहत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है , जैसे की गड्डे ‘ गड्डों मैं गाड़ी जाने से टमाटर क्रैक जा सकता है । Thank You For Reed . Article By – VikramMarket .
जैविक खेती | केंचुवों की सहायता से मिटटी को कैसे अच्छे बनाये | organic farming
प्रस्तावना – जैविक खेती की समज और केंचुवों की सहायता से मिटटी को कैसे अच्छे बना सकते है आज के समय मैं जैविक खेती के महत्व को सभी जानते है , पर जैविक खेती कोई नहीं करना चाहता , और जैविक खेती करना ही आने वाली पीढ़ी को वरदान होगा , अन्यथा रासायनिक खेती उनके लिए शाप बनकर रेहजाएगी, और वो हमें कोसेंगी । ऐसा नहीं की जैविक खेती कोई करता ही नहीं – जैविक खेती बोहत सारे किसान भाई करते है । और कुछ करना चाहते है , पर उनके पास ज्यादा जानकारी नहीं होती । तो आज इसी जैविक खेती और केंचुवों की सहायता से मिटटी को कैसे अच्छे बना सकते है ये जानेंगे । जैविक खेती जैविक खेती ही भारत और मनुष्य की शुरवाती कड़ी रही है जो उसे अपना पेट भरने मैं मदद करती आ रही है । शुरवात से ही भारतवासी खेती पर ही अपना प्रपंच चलता आरहा है , पर समय की परत पर धन की चाहत ने इसे दूषित कर दिया । कहते है की जैविक खेती की यह परम्परागत खेती आजादी तक भारत में की जाती रही है। बाद जनसख्याँ विस्फोट कारण देश में उत्पादन बढ़ाने का दबाव बना जिसके कारण देश रासयनिक खेती की और अग्रसर हुआ और अब इसके बुरे परिणाम सामने आने लगे है । जैसे उम्र से पहले बूढ़े दिखना , 60 – 70 की आयु मैं ही मृत्यु होना । बच्चों की हाइट न बढ़ना , तरह तरह के रोग – बीमारिया होना । ये सब इसी की देन है । रासायनिक खेती हानिकारक के साथ-साथ बहुत महंगी भी पढ़ती है जिससे फसल उत्पादन के दाम बढ़ जाते हैं इसके लिए अब देश दोबारा से जैविक खेती की और अग्रसर हो रहा है क्योंकि जैविक खेती कृषि पद्धति रसायनिक कृषि की अपेक्षा सस्ती, स्वावलम्बी व स्थाई है। केंचुआ और मिटटी का रिश्ता हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि भूमि में पाये जाने वाले केंचुए मनुष्य के लिए बहुपयोगी होते हैं | भूमि में पाये जाने वाले केंचुए खेत में पढ़े हुए पेड़-पौधों के अवशेष एवं कार्बनिक पदार्थों को खा कर छोटी-छोटे गोलियों के रूप में परिवर्तित कर देते हैं जो पौधों के लिए देशी खाद का काम करती है | इस केंचुए से छोटे से स्थान में 2 माह में कई हैक्टेयर के लिए खाद तैयार किया जा सकता है | इस खाद को तैयार करने के लिए केंचुआ, मिटटी तथा खरपतवार की जरुरत पड़ती है , जो आसानी से मिल जाता है | Note-: Some of this information is taken from internet. But it’s all True Article By – Vikram Shinde
जैविक खेती की आवश्यकता / अन्यथा विनाश
जैविक खेती की आवश्यकता / अन्यथा विनाश पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से त्रस्त है, और मनुष्य सोचता है कि यह बहुत बड़ा संकट है, एक न एक दिन इस महामारी का कोई न कोई समाधान जरूर निकलेगा, “लेकिन आने वाले भविष्य को देखो_जो संकट हम खुद पैदा कर रहे हैं, पूरी मानव जाति को दफनाने के लिए खुद को तैयार कर रहा है। वास्तव में, हम इसे खाद दे रहे हैं – इसे पढ़ें और आपको पता चल जाएगा ….. वर्तमान में उत्पादन में तत्काल वृद्धि को पाने के लिए कृषि में रासायनिक उर्वरकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। फसलों पर रोगों, कीटों और कवक को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। इनके इस्तेमाल से खेती की तकनीक में काफी बदलाव आया है और हमारी खेती रासायनिक हो गई है। इन रासायनिक उर्वरकों और दवाओं का उपयोग इतना व्यापक हो गया है कि लोगों को यह समझ में आ गया है कि उनका उपयोग अपरिहार्य है।वास्तव में रासायनिक उर्वरकों की खोज पिछले 70-80 वर्षों में हुई है। भारत में पिछले 40 सालों में इनका इस्तेमाल बढ़ा है। क्या उसके पहले भारत में कृषि नहीं थी? कृषि की परंपरा 10,000 साल पुरानी है।यानी बिना रासायनिक खाद के खेती की जा सकती है। वास्तव में, यह १०,००० वर्षों से ऐसा कर रहा है, और इसका उपयोग कृषि रसायनों के उपयोग के बिना किया गया है। गैर-रासायनिक खेती को जैविक खेती कहा जाता है। जैविक खेती कृषि उत्पादों को निकालने के लिए रसायनों के उपयोग के बिना प्रकृति से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ का उपयोग करती है।हम इसे परंपरा के अनुसार करते रहे हैं और हम खाद के रूप में बहुत सारे गोबर और मलमूत्र का उपयोग करते रहे हैं। एक बार फिर उन्हीं जैविक साधनों से खेती करना जैविक खेती है। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से खेत में केंचुओं की संख्या कम हो जाती है। परंपरागत रूप से कहा जाता है कि केंचुआ किसानों का मित्र होता है लेकिन मध्यकाल में इसे नजरअंदाज कर दिया गया। लेकिन केंचुए हैं किसानों के दोस्त है। इस कहावत का बड़ा अर्थ है। केंचुए खेत की मिट्टी को मुलायम कर देते हैं और खेत की जुताई का खर्च बचा लेते हैं। दूसरा काम जो उन्होंने किया वह था मिट्टी को मुलायम करना ताकि मिट्टी में फसल की जड़ों की आवाजाही आसान हो और जड़ें आसानी से मिट्टी में गहराई तक जा सकें और भोजन और पानी को अवशोषित कर सकें। फसल की वृद्धि अच्छी होती है जब जड़ें ऐसे भोजन और पानी को अवशोषित करती हैं। इसका मतलब है कि फसल केंचुओं के वजह से बहेतर बनती है। चूंकि केंचुए की आंखें नहीं होती हैं, इसलिए वे जो कुछ भी छू सकते हैं, खाएंगे और खाएंगे, जो मिट्टी के अंदर के कीटाणुओं को भी मार देंगे। इससे फसलों पर रोगों का प्रकोप कम होता है और महँगे छिड़काव की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। इसका मतलब है कि कीड़े किसानों की उत्पादन लागत बचाते हैं। केंचुए जैविक खेती का एक महत्वपूर्ण घटक हैं।एक और बात यह है कि जैविक खाद बनाने के लिए खेत की उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। वह अपना समय बर्बाद कर रहा है। लेकिन अगर उनका उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है, तो रासायनिक उर्वरक खरीदने की कोई जरूरत नहीं है और किसानों का पैसा बच जाता है। केंचुए के पेट में एक खास तरह की भट्टी होती है।उस भट्टी से वह जिस मिट्टी को खाता है उसमें नाइट्रोजन मिलाया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि केंचुए भी यूरिया के मुक्त आपूर्तिकर्ता हैं। इससे किसानों के पैसे की भी बचत होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रासायनिक खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन फसल के शरीर में और अनाज में मिल जाते हैं, और जब हम उस अनाज को खाते हैं, तो अवशोषित होने वाले विषाक्त पदार्थ अनाज से हमारे पेट में चले जाते हैं और हमारे शरीर पर बड़े घातक प्रभाव डालते हैं।इससे कई बीमारियां फैलती हैं। हाल के दिनों में, इन प्रभावों पर ध्यान देना शुरू हो गया है, और यही कारण है कि लोग रासायनिक खेती के बजाय जैविक कृषि उत्पादों की अधिक मांग कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जैविक खेती के उत्पाद गैर विषैले होते हैं। लोगों ने इस पर गौर किया है। ऐसे में जैविक खेती हमारे हित में होगी। देखो, सोचो, अपने खेती मैं अमल करो – अन्यथा विनाश के लिए तैयार होजाइये।
OrganicFarming:आर्गेनिक खेती 10 फायदे
OrganicFarming: आर्गेनिक खेती 10 फायदे जैविक खेती कृषि की एक विधि है जो फसलों की खेती और पशुधन को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक प्रक्रियाओं के उपयोग पर निर्भर करती है। यह मिट्टी के स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता में सुधार के लिए कार्बनिक पदार्थ, खाद और अन्य प्राकृतिक तरीकों के उपयोग पर जोर देता है। इस लेख में, हम जैविक खेती ( Organic Farming) के 10 फायदों के बारे मैं जानेंगे, और यह किसानों और ग्रहकों के लिए समान रूप से लोकप्रिय विकल्प क्यों बन रहा है। 1 – Sustainability सस्टेनेबिलिटी: जैविक खेती मिट्टी के कटाव को कम करके, जल संसाधनों का संरक्षण करके और जैव विविधता को संरक्षित करके टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती है। यह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और पर्यावरण को हानिकारक रसायनों और प्रदूषकों से बचाने में भी मदद करता है। 2 – Health सेहत: जैविक खाद्य पदार्थों को हानिकारक रसायनों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया जाता है, जिससे वे मानव उपभोग के लिए सुरक्षित हो जाते हैं। इससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। 3 – Soil Health मृदा स्वास्थ्य: जैविक कृषि पद्धतियां जैविक पदार्थों को जोड़कर मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करती हैं और मिट्टी के सूक्ष्मजीवों की एक विविध श्रेणी को बढ़ावा देती हैं। इससे मिट्टी की संरचना, जल प्रतिधारण और समग्र मिट्टी की उर्वरता बेहतर होती है। 4 – Biodiversity जैव विविधता: जैविक खेती विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों के विकास को प्रोत्साहित करके जैव विविधता को बढ़ावा देती है। इससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने और पर्यावरण के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में मदद मिलती है। 5 – Food Quality फूड क्वॉलिटी: कार्बनिक खाद्य पदार्थ उनकी उच्च गुणवत्ता, स्वाद और पोषण मूल्य के लिए जाने जाते हैं। वे अक्सर ताजा होते हैं, क्योंकि वे स्थानीय खेतों में उगाए जाते हैं और काटा जाता है, और हानिकारक रसायनों और संरक्षक से मुक्त होते हैं। 6 – Economic Benefits आर्थिक लाभ: जैविक खेती से किसानों को आर्थिक लाभ मिल सकता है, क्योंकि इसके लिए अक्सर कम पूंजी निवेश की जरूरत होती है और इससे मुनाफा मार्जिन ज्यादा हो सकता है। यह स्थानीय नौकरियों के सृजन और ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करने में भी मदद कर सकता है। 7 – Pesticide Reduction कीटनाशक की कमी: जैविक खेती से कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है, क्योंकि फसल आवर्तन, साथी रोपण और कीटों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक शिकारियों के उपयोग जैसे प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करके फसलों को उगाया जाता है। 8 – Reduced Environmental Impact पर्यावरण पर प्रभाव कम होता है: जैविक खेती से पर्यावरण में निकलने वाले हानिकारक रसायनों और प्रदूषकों की मात्रा को कम करके कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जाता है। इससे पर्यावरण, वन्यजीवों और खाद्य श्रृंखला के स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद मिलती है। 9 – Community Benefits सामुदायिक लाभ: जैविक खेती सामुदायिक भागीदारी और सहयोग को बढ़ावा देती है, क्योंकि किसान मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करते हैं। इससे समुदाय की भावना मजबूत हो सकती है और अधिक से अधिक सामाजिक सामंजस्य स्थापित हो सकता है। 10 – Consumer Confidence ग्रहकों का भरोसा: जैविक खेती ग्रहकों को उन खाद्य पदार्थों पर विश्वास प्रदान करती है, जिनका वे उपभोग कर रहे हैं, क्योंकि वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह हानिकारक रसायनों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया गया है। यह व्यक्ति और पर्यावरण दोनों के स्वास्थ्य और कल्याण का समर्थन करने में मदद करता है। अंत में, जैविक खेती किसानों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण के लिए कई लाभ प्रदान करती है। टिकाऊपन को बढ़ावा देकर, स्वास्थ्य, मिट्टी की सेहत, जैव विविधता, खाने की गुणवत्ता, आर्थिक लाभ, कीटनाशक की कमी, कम हुआ पर्यावरण प्रभाव, सामुदायिक लाभ, और उपभोक्ताओं का भरोसा, जैविक खेती कृषि की एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान विधि है जो हमारे ध्यान और समर्थन के योग्य है। Published: 6-3-2023 Article By.- VikramMarket. सभी मार्किट भाव https://www.vikrammarket.com/2023/03/04/agriculture-%e0%a4%95%e0%a5%83%e0%a4%b7%e0%a4%bf-%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a5%82%e0%a4%b0/ https://www.vikrammarket.com/2023/02/28/kisanscheme13%e0%a4%b5%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%af%e0%a4%be_%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%ae/ https://www.vikrammarket.com/2023/02/16/pmkisanyojana%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%a8-3000-%e0%a4%b0%e0%a5%81-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%b6%e0%a4%a8/ https://www.vikrammarket.com/2023/01/26/dairy_8-%e0%a4%b8%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%be-%e0%a4%a6%e0%a5%82%e0%a4%a7-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2/ https://www.vikrammarket.com/2023/02/25/%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%87%e0%a4%b8-%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a3%e0%a4%af-%e0%a4%b8/ https://www.vikrammarket.com/2022/11/30/top-5-%e0%a4%ad%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%be-%e0%a4%a6%e0%a5%82%e0%a4%a7/ Home पशुपालन Trend
Organic Farming : गोबर खत के फायदे
Organic Farming : गोबर खत के फायदे: अगर आप सब्जी की खेती करते है ? तो आपने पाया होगा की एक ही खेत मैं बार बार फसल लेने से खेती की उत्पादन क्षमता और आने वाले फल की गुणवत्ता बोहत ही कम हो जाती है । इसी लिए अगर आप उसमें गाय का सड़ाया हुवा गोबर इस्तमाल करते है , और अपनी खेती को आर्गेनिक खेती की और ले जाना चाहते है । तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है – इस मैं हम आपको गोबर खत के फायदे बताएँगे । Organic farming: यदि सब्जी की फसल में आंशिक रूप से विघटित गाय के गोबर को मिट्टी में मिला दिया जाए तो गोबर के विघटित होने से गर्मी उत्पन्न होती है। इससे लाभकारी सूक्ष्मजीवों, केंचुओं और जड़ों की संख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अत: ताजा गोबर, आंशिक रूप से विघटित गोबर के स्थान पर इसे अच्छी तरह से विघटित कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। गोबर की खाद, खेत का कचरा, पशु शेड से निकलने वाला छड़ी-कचरा बेहतर होता है अगर इन्हें जैविक सामग्री का उपयोग करके उन्नत तरीकों से खाद बनाया जाए और खेतों में मिलाया जाए तो खेती के सबसे बढ़िया होता है । Dung manure: यदि यह संभव न हो तो गाय के गोबर को किसी खुली जगह पर जमा करके उस पर पानी डालें और कम्पोस्ट कल्चर का उपयोग करके उसे अच्छी तरह से विघटित कर लें। फिर ऐसी अच्छी तरह सड़ी हुई खाद को खेत में डालना चाहिए, बगीचे में गोबर मिलाते समय गड्ढा खोदकर उसे मिट्टी से ढक देना चाहिए। कार्बनिक पदार्थ मिट्टी के संपर्क में आते ही तेजी से विघटित हो जाते हैं।यदि संभव हो तो ऐसे गोबर से वर्मीकम्पोस्ट बनाकर बगीचे में लगाना चाहिए। यह ज्यादा फायदेमंद होगा। गोबर खत फसलों की पोषक वृद्धि के लिए उपयोगी है। हालाँकि, खेत में मिलाते समय यह अच्छी तरह से विघटित होना चाहिए। गोबर को पूर्णतः विघटित करने के लिए कम्पोस्ट कल्चर का प्रयोग करना चाहिए। कम्पोस्ट कल्चर का उपयोग करते समय एक टन खाद के लिए एक किलोग्राम या एक लीटर कल्चर पर्याप्त होता है। बकरियों और भेड़ों के गोबर का स्तमाल कर सकते है क्या ? इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बकरियों और भेड़ों के गोबर से बबूल जैसे पौधों के बीज खेत में न फैले। बकरियाँ और भेड़ें चरते समय बबूल की फलियाँ खाती हैं। इसलिए बबूल के बीज उनके मल के माध्यम से उत्सर्जित होते हैं। अगर ऐसे झुंड की खाद बगीचे में डाली जाए तो अगले पांच से छह साल तक खेत में बबूल के पेड़ उगते रहेंगे। चूंकि गाय का गोबर कहीं भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है, इसलिए उत्पादन बढ़ाने के लिए इसका उपयोग फायदेमंद है। Published: 14-12-2023 Article By.- VikramMarket. सभी मार्किट भाव Home Top 5 Dairy Business: 5 डेयरी बिजनेस Peru ki kheti: अमरूद की खेती कैसे करे